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पंडित घनश्याम द्विवेदी आत्मज स्व पंडित श्री लेखराज जी द्विवेदी आपका जन्म विक्रम संवत २०२३ में हुआ |
आपका प्रारंभिक पठन आपके पिताश्री के सानिध्य में ही हुआ और सज्ञोपवित संस्कार १९७८ में हुआ | आपके
पिताश्री पंडित लेखराज जी द्विवेदी के ज्योतिष एवं कर्मकांड में जगत जगत के प्रखांड विद्वान थे. आपने
आजीवन कर्मकांड एवं ज्योतिष के क्षेत्र में कई नए आयामों को बनाते हुए कई विद्यार्थियों को निशुल्कः शिक्षा
प्रधान की| श्रीमाली ब्राह्मण समाज में आज भी इनका नाम बड़े ही आदरपूर्वक लिया जाता है|
स्व पंडित लेखराज जी द्विवेदी ने अपने पीढ़ी से प्राप्त ज्ञान को परंपरागत रूप से इस ज्ञान को अपने पुत्र पंडित
घनश्याम द्विवेदी को प्रधान किया | पंडित द्विवेदी ने अपने पूज्य पिताश्री को ही अपना गुरु मानते हुए इस ज्ञान
का निरंतर अध्यन करते हुए ज्योतिष एवं कर्मकांड के ज्ञान को ग्रहण किया | अपने पिता की आज्ञा के अनुसार
ज्ञान को अर्जित करते हुए ज्योतिष एवं कर्मकांड के क्षेत्र में अपने नए कीर्तिमान स्थापित किया |
पंडित द्विवेदी ने १९८८ में जोधपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की , एवं ऍम कॉम की डिग्री लेने के
पश्चात आपने इस परम परागत ज्ञान को आगे बढ़ाना शुरू किया | पूज्य पिता श्री के सानिध्य में सेवारत रहकर
ज्योतिष की क्षेत्र में विवध विषयो एवं विविध विषयक कुंडलियो का अध्ययन किया , इसी क्रम में आपने भारत
वर्ष के विविध महानगरो का भ्रमण करते हुए अपने ज्ञान और पिता के आशीर्वाद से जनमानस की समस्याओं
का सफलता पूर्वक निस्तारण किया , कर्मकांड विद्या के माध्यम से आपने समय समय पर अनेको यज्ञ एवं
अनुष्ठान के वैदिक परम्परानुसार कर्मविशेष यथा कार्य बाधा , व्यापार में हानि , क्लेश , रोग एवं शत्रुनाश हेतु
कई कर्मो को सम्पादित किया साथ ही आपने विवाह में विलम्ब , संतान बाधा , पारिवारिक सुख शांति जैसे
सभी विषयो पर कई प्रयोगों के माध्यमसे सफलता प्राप्त कर जनमानस को लाभ दिया | वही आपने ज्योतिष के
साथ साथ हस्तरेखा विषय का गहनता पूर्वक अध्ययन किया और इस विषय में भी श्रेष्ठ ज्ञान को प्राप्त किया |
आपने ज्योतिष एवं कर्मकांड के क्षेत्र में अपने पिता की ही भाति कई विषयो का ज्ञान अपने अनुभव एवं शोध के
माध्यम से कई नए कीर्तिमान स्थापित किये और सूर्य जिस तरह से अधिक समय तक बादलो में छुप नही सकता
उसी तरह द्विवेदी जी ने अपने ज्ञान रूपी सूर्य के माध्यम से सबको प्रकाश दिया और द्विवेदी जी के इन्ही
सत्प्रयासो के कारण आपको समय समय पर ज्योतिष एवं कर्मकांड के क्षेत्र में विविध सम्मान पत्रों एवं उपाधियो
से अलंकृत किया , सम्मान के क्रम में आपको कई बार “ ज्योतिष विभूषण “ “ ज्योतिष भास्कर “ एवं स्वर्ण
पदको से विभूषित किया गया |आपने भारतवर्ष में आयोजित होने वाले विविध ज्योतिष एवं धर्म सम्मेलनों में
भाग लेकर जोधपुर एवं श्रीमाली ब्राह्मण समाज को गौरवान्वित किया | आपने १९९५ से “ वास्तु “ विषय पर
शोध कार्य करते हुए वास्तु के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किये और आपने मात्र भारत में ही नही अपितु विदेशो
में भी जाकर इसका प्रचार प्रसार किया आपने दुबई , शारजहाँ , अबुधाबी , मस्कट एवं बैंकोंक में जाकर वहा के
नागरिको को लाभान्वित किया .